भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
140 दीपक की लौगाल पर ढुलका जैसे हो आँसू ।141दबी रुलाईबसी परदेस मेंबेटी न आई ।142 भाई जोहताबाट एकटक , नआई बहना । 143नींद थी आईसपने में सिसकापड़ी सुनाई। 144सिसके पिता सबसे छुपकरअँधियारे में।145 चलते गएलुटे-पिटे -से पितागलियारे में ।146पता ये चला -बेटी हुई व्याकुलहिरनी जैसी ।147 दीपक जले नभ उतरा धरा मिलता गले ।148 अँधेरा डरा देखकर उजाला छुपता फिरा । 149 रोशनी बसी-मन नन्हें शिशु कीबिखरी हँसी 150 दिया जो जलाथा डरा अँधियाराउजाला खिला 151मन का तममिटाते रहे तेरेमन के दिए ।152दीप जलाओजो भटके पथ में राह दिखाओ । 153प्रेम -दीप से मन में हैं उजालेतुम्हीं ने बाले । 154कब था डरा ?नन्हा -सा दीप यहनेह से भरा ।155आओ बुनेंगे उजालों की चादरभावों से भर ।156 दुख-पाहुनन मन में टिकाओदीप जलाओ ।157रौशन घरबन गया मन्दिरपूजा के स्वर ।158 उस वर्षा में खूब तैरता है येआँगन सारा 159 रिश्तो के नामगिरवी न रखेंगेसुबह -शाम । 16 मिलेगा प्रेम तो निभाएँगे हम सारे ही नेम ।
</poem>