भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक=कुमार मुकुल |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हम जे कह रहल बानी
ओकरा जान-समझ ल।
देव आउर अदमी
जवन गुरू समान बरहम के
मान देवेलन
उ गुरू के
ओह लायक गेयानी
​​हमहीं बनाईंला। ॥​5॥

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥5॥


</poem>
761
edits