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{{KKRachna
|रचनाकार=सुनीता पाण्डेय 'सुरभि'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अगर दिल में चाहत बसाई न होती।
तो दिल पर कभी चोट खाई न होती॥
मुहब्बत की शम्मा जलाई न होती।
तो दुश्मन ये सारी खुदाई न होती॥
चमन मेरे दिल का उजड़ता नहीं ये-
यूँ दिल की कली मुस्कुराई न होती।
रुलाया न होता तेरी याद ने गर-
लबों पर मैं फरियाद लाई न होती।
मेरे हाथ की इन लकीरों में तेरा-
अगर नाम होता जुदाई न होती।
ज़माना भी होता न दुश्मन हमारा-
जो शामिल तेरी बेवफ़ाई न होती।
जो तन्हा ही रहना था मुझको 'सुनीता' -
तो बेहतर था दुनिया में आई न होती।
</poem>
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अगर दिल में चाहत बसाई न होती।
तो दिल पर कभी चोट खाई न होती॥
मुहब्बत की शम्मा जलाई न होती।
तो दुश्मन ये सारी खुदाई न होती॥
चमन मेरे दिल का उजड़ता नहीं ये-
यूँ दिल की कली मुस्कुराई न होती।
रुलाया न होता तेरी याद ने गर-
लबों पर मैं फरियाद लाई न होती।
मेरे हाथ की इन लकीरों में तेरा-
अगर नाम होता जुदाई न होती।
ज़माना भी होता न दुश्मन हमारा-
जो शामिल तेरी बेवफ़ाई न होती।
जो तन्हा ही रहना था मुझको 'सुनीता' -
तो बेहतर था दुनिया में आई न होती।
</poem>