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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>गुम जो यादों की डायरी हो जाए
ख़ाली ख़ाली ये ज़िन्दगी हो जाए

ऐसी दीवानगी से क्या मतलब
बात हम से जो होश की हो जाए

आंसुओं से दिये जलाते चलो
कुछ तो रस्ते में रोशनी हो जाए

आ चुका वक़्त गर जुदाई का
काम ये भी हंसी खुशी हो जाए

क़तरा क़तरा हयात क्या जीना
जो भी होना है वो अभी हो जाए

करते चलिए हिसाब ज़ख्मों का
कब कहां ख़त्म ज़िन्दगी हो जाए </poem>