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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>करते हैं तकरार मज़े में रहते हैं
फिर भी हम सब यार मज़े में रहते हैं

हिजरत करने वालों को मालूम नहीं
हम पुल के इस पार मज़े में रहते हैं

बाज़ू वालों को दुख है तो बस ये है
लोग पस ए दीवार मज़े में रहते हैं

पतझड़ हो या हरियाली का मौसम हो
हम जैसे किरदार मज़े में रहते हैं

आस पास की बस्ती वालों से कह दो
करते हैं जो प्यार मज़े में रहते हैं </poem>