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रेशम री डोर / नीलम पारीक

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<poem>
एक
रेशम री डोर
बन्धी ही
थारे म्हारे बिचाले
टूट न जा कदे
सोचते ई लागतो डर
पर तू
डोर रो एक एक तार
अपने ई हाथां
धीरे धीरे
माँ ई माँ
निर्दयता सूं
अइयाँ
टूक टूक कर नाख्यो
के आज जद
तोड्यो आखिरी तार
तो दरद तो होयो
पर बितनो नई
जितनो सोच्यो हो
कोटि कोटि धिनबाद
थाने
</poem>
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