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<poem>
वो रंज़िश में नहीं अब प्यार में है
मेरा दुश्मन नए किरदार में है

खुशी के साथ ग्लोबल आपदाएँ
भई खतरा तो हर व्यापार में है

यहांँ सब बदहवासी में खड़े हैं
ये ठहरी ज़िन्दगी रफ्तार में है

नहीं समझेगा कोई दर्द तेरा
तड़पना टूटना बेकार में है

कोई उम्मीद हो जिसमें, खबर वह
बताओ क्या किसी अख़बार में है

हवा मँझधार में लाई है लेकिन
अभी भी हौसला पतवार में है

घरों में आज सूनापन है केवल
यहांँ रौनक तो बस बाज़ार में है
</poem>
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