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|रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस'
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<poem>
हर सू तेरा किस्सा रक्खा
राह में जैसे काँटा रक्खा

आने की उम्मीद में तेरी
दिल को कितना समझा रक्खा

हर आहट पर कान लगा है
दर पर अपना साया रक्खा

तेरी बस्ती के बच्चों से
टॉफी वाला रिश्ता रक्खा

होंठ कहीं पर जुल्फ कहीं पर
हर चेहरे में चेहरा रक्खा

नींद से मुझको डर लगता है
आँखों पर इक पहरा रक्खा

'तेजस' तो बिल्कुल पागल है
उसकी बातों में क्या रक्खा

</poem>
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