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युग का जुआ / हरिवंशराय बच्चन

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मत देख दाएँ,
और बाएँ, और पीछे,
झाँक मत बग़लेंबगलें,
न अपनी आँख कर नीचे;
अगर कुछ देखना है,
देख अपने वे
वृषम कंधे
जिन्हेंध जिन्हें देता निमंत्रण
सामने तेरे पड़ा
युग का जुआ,
देख दुर्गम और गहरी
घाटियाँ
जिनमें करोड़ों संकटकों संकटों के
बीच में फँसता, निकलता
यह शकट
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