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Kavita Kosh से
मत देख दाएँ,
और बाएँ, और पीछे,
झाँक मत बग़लेंबगलें,
न अपनी आँख कर नीचे;
अगर कुछ देखना है,
देख अपने वे
वृषम कंधे
सामने तेरे पड़ा
युग का जुआ,
देख दुर्गम और गहरी
घाटियाँ
जिनमें करोड़ों संकटकों संकटों के
बीच में फँसता, निकलता
यह शकट