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|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
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<poem>
जनता नहीं है यह
के विकास की डाँड़ी खेवाते
अपने करतबों पर नचाते
किनारे करते रहोगे
यह पानी है
इसकी जगह को
विकास के ईंट-पत्थरों से
भर दोगे
तो तुम्हारे घरों में
घुस आएगा यह
और नरेटी तक चढ़
बंद कर देगा
तुम्हारी सांसें।
</poem>
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|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=
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जनता नहीं है यह
के विकास की डाँड़ी खेवाते
अपने करतबों पर नचाते
किनारे करते रहोगे
यह पानी है
इसकी जगह को
विकास के ईंट-पत्थरों से
भर दोगे
तो तुम्हारे घरों में
घुस आएगा यह
और नरेटी तक चढ़
बंद कर देगा
तुम्हारी सांसें।
</poem>