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पटना-मुंबई बरसात / कुमार मुकुल

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जनता नहीं है यह
के विकास की डाँड़ी खेवाते
अपने करतबों पर नचाते
किनारे करते रहोगे

यह पानी है 

इसकी जगह को
विकास के ईंट-पत्थरों से
भर दोगे
तो तुम्हारे घरों में 
घुस आएगा यह
और नरेटी तक चढ़ 
बंद कर देगा
तुम्हारी सांसें।
</poem>
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