भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्त का जीवन / कुमार अंबुज

30 bytes added, 15:19, 9 नवम्बर 2019
बल्कि ख़ुश रहकर, नाचते-गाते ज़िन्दा रहने लगते हैं
पीछे छूट गई बारीक़, मटमैली रेत में
मरीचिका जैसा भी कुछ नहीं चमकता
प्रेम की कोई प्रागैतिहासिक तस्वीर टँगी रहती है दीवार पर
कि रोज़-रोज़ मेल-मुलाक़ात मुमकिन नहीं
सारे विस्थापित जान चुके हैं
अब वे किसी गाँव-क़स्बे के निवासी नहीं
कुछ ही दूरी पर जो एक बहुत बड़ा कॉम्पलेक्स है
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,056
edits