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सतरंगी नव-रश्मियों से
 
प्राची के ऐसे अभिषेक हों ।
 
आशाओं का सूरज उगे तो
 
निर्मल सबके बुद्धि-विवेक हों॥
 
द्वेष त्यागें, उत्थान करें मिल
 
हम भारतवासी सब एक हों !
 
पात दम्भ के सभी झर जाएँ
 
ममता -समता सब अतिरेक हों।
नवगीत मधुर खग-कंठ गाएँ
 
प्रेम-सद्भाव सुमन अनेक हों॥
 
भारत माँ का यशोगान करें
 
हम भारतवासी सब एक हों ॥
क्षुधाएँ शान्त, कंठ हों सिंचित
 
नव उन्मेष नवल अभिलेख हों।
 
'कविता' मातृभूमि-सेवा ,धर्म
इसमें निरत धर्म-वर्ण प्रत्येक हों ॥
नभ-दिगंत छूने की ललक में
 
हम भारतवासी सब एक हों!
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