भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'ताक रहे हो गगन ? मृत्यु - नीलिमा - गहन गगन ? अनिमेष, अचि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
ताक रहे हो गगन ?
मृत्यु - नीलिमा - गहन गगन ?
अनिमेष, अचितवन, काल-नयन ?
नि:स्पंद, शून्य, निर्जन, नि:स्वन ?
देखो भू को ! जीव प्रसू को !
हरित भरित पल्लवित मर्मरित
कूजित गुंजित कुसुमित भू को !
कोमल चंचल शाद्वल अंचल,
कल-कल छल-छल चल-जल-निर्मल,
कुसुम खचित मारुत सुरभित
खग कुल कूजित प्रिय पशु मुखरित
जिस पर अंकित सुर-मुनि-वंदित
मानव पद तल !
देखो भू को
स्वर्गिम भू को,
मानव पुण्य-प्रसू को !
मृत्यु - नीलिमा - गहन गगन ?
अनिमेष, अचितवन, काल-नयन ?
नि:स्पंद, शून्य, निर्जन, नि:स्वन ?
देखो भू को ! जीव प्रसू को !
हरित भरित पल्लवित मर्मरित
कूजित गुंजित कुसुमित भू को !
कोमल चंचल शाद्वल अंचल,
कल-कल छल-छल चल-जल-निर्मल,
कुसुम खचित मारुत सुरभित
खग कुल कूजित प्रिय पशु मुखरित
जिस पर अंकित सुर-मुनि-वंदित
मानव पद तल !
देखो भू को
स्वर्गिम भू को,
मानव पुण्य-प्रसू को !