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18:37, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:
:मैं बुझते दीपक का न कभी
:धूमिल नीरव उच्छ्वास बना !
:जीवन के कितने ही भ्रम में,
:भूला न कभी अपने क्रम में,
::मैं तो अविरल बहने वाली
::सरिता के उर की साँस बना !
:मैं अपना ख़ुद पतवार बना,
:मैं अपना ख़ुद आधार बना,
::निज की निर्भरता पर रखता
::अविचल जीवित विश्वास घना !
1945