भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर }} <poem> ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:प्रतीक्षा में सितारे खो गये !
:बितायी थी अकेली रात जिनको गिन,
:बने थे धड़कनों के जो सबल संबल,
:किरन पूरब दिशा से ला रही अब दिन ;
:निराशा और आशा का उड़ा आँचल,
::निरंतर आँसुओं की धार से
::छायी गगन की कालिमा को धो गये !
:नयन पथ पर बिछे, निशि भर रहे जगते
:सरल उर-स्नेह से जलता रहा दीपक,
:जलन पूरित सभी भावी निमिष लगते ;
:युगों से कर रहा मन साधना अपलक,
::हृदय में आ प्रिये ! उठते सतत
::अच्छे-बुरे ये भाव रह-रह कर नये !
:क्षितिज की ओर फैले पंथ से चल कर
:कभी हँसते हुए तुम पास आओगे,
:बना विश्वास, जीवन के अरे सहचर !
:नहीं तुम इस तरह मुझको भुलाओगे,
::पपीहे ! कह वियोगी के सभी
::अब तो अभागे कल्प पूरे हो गये !
:1949
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:प्रतीक्षा में सितारे खो गये !
:बितायी थी अकेली रात जिनको गिन,
:बने थे धड़कनों के जो सबल संबल,
:किरन पूरब दिशा से ला रही अब दिन ;
:निराशा और आशा का उड़ा आँचल,
::निरंतर आँसुओं की धार से
::छायी गगन की कालिमा को धो गये !
:नयन पथ पर बिछे, निशि भर रहे जगते
:सरल उर-स्नेह से जलता रहा दीपक,
:जलन पूरित सभी भावी निमिष लगते ;
:युगों से कर रहा मन साधना अपलक,
::हृदय में आ प्रिये ! उठते सतत
::अच्छे-बुरे ये भाव रह-रह कर नये !
:क्षितिज की ओर फैले पंथ से चल कर
:कभी हँसते हुए तुम पास आओगे,
:बना विश्वास, जीवन के अरे सहचर !
:नहीं तुम इस तरह मुझको भुलाओगे,
::पपीहे ! कह वियोगी के सभी
::अब तो अभागे कल्प पूरे हो गये !
:1949
Anonymous user