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[[Category:ग़ज़ल]]
कितने सैनिक, कितने पहरे, कब तक रहता डरा हुआ।<BR><BR>
कमरे का सच पीला पीला बाहर निकला हरा हुआ।<BR><BR>
जिसका सिक्क़ा वही कसौटी सुनते रहिये झंकारें<BR>
एक बार संसद में पहुँचा खोटा सिक्का खरा हुआ।<BR><BR>
आर पार क़ातिल कुहरे के दो सदियों के संगम पर<BR>
एक मसीहा आधा ज़िन्दा लेकिन आधा मरा हुआ।<BR><BR>
आँखें गुमसुम रिमिझम रिमिझम शोर मचाया होठों ने<BR>
रोते रोते हरा हुआ, हँसतें-हँसतें अधमरा हुआ।<BR><BR>
होड़ लगी है बिक जाने की, टिक जाने की फिक्र किसे<BR>
उल्टी बानी भूल कबीरा भी देखो मसखरा हुआ।<BR><BR>
बरसों लंबी वीरानी का मारा हुआ शिकारा दिल<BR>
उम्मीदों की झीलों में अब भी है पानी भरा हुआ।<BR><BR>
गये राम जी फिर जंगल में राज तिलक के पहले ही<BR>
करते रहिए मन में मंथन किसका मन मंथरा हुआ।<BR><BR>