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|रचनाकार=राहुल शिवाय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
होगा विकसित देश
सिर्फ विज्ञापन कहता है
राम भरोसे भोजन, कपड़ा
शिक्षा औ आवास
अर्थ-शास्त्र भी औसत धन को
कहने लगा विकास
सम्मानित समुदाय
जेठ को सावन कहता है
जब-जब बात उठी है
बस्ती कब होगी मोडर्न
तब-तब मुद्दा बनकर आया
पिछड़ा और सवर्ण
क्या हालता है,
मुद्रा-दर का मंदन कहता है
जिसने सपने कम दिखलाए
हुआ वही कमजोर
तकनीकों ने संध्या को भी
सिद्ध किया है भोर
सब हल होगा,
बार-बार आश्वासन कहता है
</poem>
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होगा विकसित देश
सिर्फ विज्ञापन कहता है
राम भरोसे भोजन, कपड़ा
शिक्षा औ आवास
अर्थ-शास्त्र भी औसत धन को
कहने लगा विकास
सम्मानित समुदाय
जेठ को सावन कहता है
जब-जब बात उठी है
बस्ती कब होगी मोडर्न
तब-तब मुद्दा बनकर आया
पिछड़ा और सवर्ण
क्या हालता है,
मुद्रा-दर का मंदन कहता है
जिसने सपने कम दिखलाए
हुआ वही कमजोर
तकनीकों ने संध्या को भी
सिद्ध किया है भोर
सब हल होगा,
बार-बार आश्वासन कहता है
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