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लाज प्रार्थना की रख लो श्वेतवर्णा ! भारती ! माँगोमती ! माँ श्वेतानन! हंसवाहिनी जग को वर दो ज्ञानमुद्रा ! वरप्रदा ! माँ शारदे ! तुमको नमन l
छाया जग पर तम का बादलमैं अकिंचन, निरालम्बी सामने कबसे खड़ा, मन माँ मुझे तुम दो सहारा, मैं चरण में जाग उठे हैं रिपु दलहूँ पड़ा,फैला लोभसर्वव्यापी शक्ति हो माँ, अहम औ लालच- मानवता लगती है निर्बल l ज्ञान दीप, माँ! मन में भरकर- ज्योतिर्मय सारा जग कर दो lतुम धरा तुम ही गगन।
क्षोभ, निराशा दुख सुदूर तुम कला साहित्य और संगीत की होचेतना, जागे अहम न हृदय क्रूर होदेवता भी बनके साधक करते हैं आराधना, मन-मन में विश्वास भरो वह- पापी ज्ञान का हर दम्भ चूर हो l आलोकिता कर आशीश दो कण-कण माँ!- नवल चेतना सबमें भर दो l, रख सकूँ नि:स्वार्थ मन।
मन-मन हो संगीत प्रेम काज्ञान बिन मैं माँ अधूरा, मुझको विद्या दान दो, मिलन भरा हो भाव, पिंगल, शब्द भरकर गीत प्रेम कामें नवप्राण दो, जो चाहे वह मीत मिले माँ!-ऐसा कर दो रीत प्रेम का l कलुष-भेद हर दो मन तुम्हारी ही कृपा से माँ!- प्रेमिल निर्झर जग को स्वर दो गा रहा हूँ मैं भजन l
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