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<poem>
क़त्ल करना तुम्हारी फितरत है।
माफ़ करना हमारी आदत है।

सबका मैं अहतराम करता हूँ,
मेरे घर हर तरह से बरकत है।

अब नहीं बुतघरों से कुछ मतलब,
इश्क़ ही अब मेरी इबादत है।

प्यार से उसने मुझको देखा था,
आज तक रूह में हरारत है।

साथ मैं अपनी माँ के रहता हूँ
मेरे घर में ही मेरी जन्नत है।

एक दरिया मिले समंदर से
ये सियासत है या मुहब्बत है।

मैं चिरागों के साथ जलता हूँ,
क्या कहूँ अब ये मेरी किस्मत है।
</poem>
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