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वो तूर हो कि हश्रे-दिल अफ़्सुर्दगाने-इश्क<ref>प्रेम में दुखी लोग</ref>
हर अंजुमन में आगलगाये-हुए-से हैं
सुब्हे-अज़ल को यूँ ही ज़रा मिल गयी थी आंख
वो आज तक निगाह चुराये-हुए-से हैं
हम बदगु़माने-इश्क तेरी बज़्मे - नाज से
जाकर भी तेरे सामनेआये-हुए-से हैं
ये क़ुर्बो-बोद<ref>सा‍मीप्य एवं दूरी</ref> भी हैं सरासर फ़रेबे-हुस्ने
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