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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
[[Category:बाल-कविताएँ]]
<poem>
'''गैया'''
हरी दूब है गैया खाती
सबको पीठा दूध पिलाती ।
बने दूध से दही-मलाई
तरह -तरह की खूब मिठाई ।
'''गीत'''
ढओल बजा मेढक का ढम-ढम
भालू बना बाँसुरी वाला ।
अच्छे साथी मिले गधे को
गीत सुनाता गड़बड़झाला ।
'''सर्कस'''
देखो सर्कस का यह खेल
हाथी, घोड़ा ठेलमपेल ।
झूला झूल उछल हवा में
कुछ देखो छलाँग लगाते।
बन्दर , चीता, जोकर आते
सब हैं अपने खेल दिखाते।
'''नेवले की जीत'''
समझ नेवले को छोटा
नाग झपट पड़ा ।
बहुत निडर था नेवला
डटकर खूब लड़ा ।
नेवले की जीत हुई
हारा नाग बड़ा ।
'''सवारी'''
आसमान पर जहाज उड़े
जिधर चाहता उधर मुड़॥
छुक-छुक करके आरी रेल
दूर-दूर तक जाती रेल ।
लम्बी सड़क बहुत इठलाती
मोटर इस पर दौड़ लगाती ।
</poem>
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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
[[Category:बाल-कविताएँ]]
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'''गैया'''
हरी दूब है गैया खाती
सबको पीठा दूध पिलाती ।
बने दूध से दही-मलाई
तरह -तरह की खूब मिठाई ।
'''गीत'''
ढओल बजा मेढक का ढम-ढम
भालू बना बाँसुरी वाला ।
अच्छे साथी मिले गधे को
गीत सुनाता गड़बड़झाला ।
'''सर्कस'''
देखो सर्कस का यह खेल
हाथी, घोड़ा ठेलमपेल ।
झूला झूल उछल हवा में
कुछ देखो छलाँग लगाते।
बन्दर , चीता, जोकर आते
सब हैं अपने खेल दिखाते।
'''नेवले की जीत'''
समझ नेवले को छोटा
नाग झपट पड़ा ।
बहुत निडर था नेवला
डटकर खूब लड़ा ।
नेवले की जीत हुई
हारा नाग बड़ा ।
'''सवारी'''
आसमान पर जहाज उड़े
जिधर चाहता उधर मुड़॥
छुक-छुक करके आरी रेल
दूर-दूर तक जाती रेल ।
लम्बी सड़क बहुत इठलाती
मोटर इस पर दौड़ लगाती ।
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