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घूरती हुई आँखें / अजित कुमार

988 bytes added, 13:59, 9 सितम्बर 2008
डर के मारे मैंने आँखें कीं बद ।
 
 
बीत गये कई सल …
 
लेकिन अब भि तो मेरा है वही हाल ।
 
एक उसी घटना को पाता मक़िं नहीं भूल ।
 
याद मुझे आती :
 
ज्यों आते थे याद वर्ड्सवर्थ को डैफ़ोडिल फूल ।
 
दीखतीं अँधेरे में हैं मुझको अब भी
 
चमकीली, तेज़, बेधतीं, सम्मोहन करतीं-
 
बिल्ली की दो आँखें …
 
 
अन्धकार पाप है । और
 
अज्ञान भी ।
 
लेकिन जिसको बेधें बिल्ली की आँखें-
 
रहकर अँधेरे में भी, प्प्प क्या करेगा वह-
 
घूरती हुई आँखों की स्थिति का ज्ञानी ।
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