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दिव्य छवि / विलियम ब्लेक / अनिल जनविजय
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17:01, 15 मई 2020
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<poem>
क्रूरता रखती है
मानव
का
दिल
रखती है क्रूरता
मानव
का
चेहरा होता ईर्ष्या का
दिव्यता का मानव रूप है आतंक
गोपनीयता है मानव पोशाक तंग
मानव पोशाक जैसे ढले लोहे का गारा
मानव रूप है एक ढला हुआ अंगारा
अनिल जनविजय
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