भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जीर्ण और संकीर्ण व्यवस्था
पर,आदर्श प्रहर प्रहार कहाँ है?
लाशों के अम्बार लगे हैं
ख़ुद पर जो आसक्त नहीं हो
अब ऐसा खुद्दार ख़ुद्दार कहाँ है?
इंसानों की खोज हो रही
आप पूछते प्यार कहाँ है?
</poem>