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मनः प्राणज्ञानेन्द्रिय सकल कर्मेन्द्रिय तनू
निजात्मा सत्ताले जड इ सव चैतन्य झँञि छन् ।।
यही वोध् बूझीन्या अति विमल वीधानुभव वोधानुभव यो
वनाहूँदामा श्री हरिचरण मात्रै शरण छन् ।।१।।
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