भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> गूँजे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}

<poem>
गूँजेगें मेरे गीतों के सब स्वर सभी दिशाओं में।
धरा- गगन में, जन- जन-मन में, मन्द, स्वच्छन्द हवाओं में।

पीड़ा के स्वर गानेवाला एक अकेला कवि हूँ मैं।
सच पूछो तो घोर तिमिर में प्रखर चमकता रवि हूँ मैं।
ज्योति-अगन में, चन्द्रकिरन में, इन अलमस्त फ़जाओं में।

शब्द नहीं, मेरे गीतों में वेद-ऋचाएँ रहती हैं।
तुलसी, सूर, कबीरा बसते, गंगा- यमुना बहती है।
नींद- शयन में, वन- उपवन में, सुमन, सुगंध, लताओं में।

यज्ञ नया, नित मंत्र नया, नित हवनकुण्ड तैयार करूँ।
डालूँ समझौतों की समिधा, उसे जला दूँ, क्षार करूँ।
भक्ति- भजन में, श्रवण- मनन में, सदा सुकोमल भावों में।

युगद्रष्टा मैं, मैंने देखा दुनियाँ का बनना- मिटना।
दूर किनारे खड़े लिख रहा, घटती है जैसी घटना।
सजल नयन में, आर्त बयन में, शुचि "संगीत", अदाओं में।
</poem>
230
edits