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लागै है / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
औ तो हुवणो ईज है
रोवणो है मन सूं
या ऊपरलै मन
तेजाब रो रुकणो
अेक ई जग्यां उबळणो
फूलां रै सुपनां नैं
राख कर देवै
सांस-सांस मांय
धुंवो भर देवै
हर बार
लागै है
हर आवती-जावती सांस
आखरी
इण फूठरी-फर्री
दुनियां मांय।
</poem>
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