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|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
माटी री सौरम
सांसां मांय घुळ जावै
तो जीवण सफळ होय जावै

माटी रो मिनख
जे आपरी माटी नैं याद नीं राखै
तो उणरै जीवण रो कांई मोल!
</poem>
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