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गांव / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
कुण बजावै
चैन री बंसी
कुण पूजै पीपळ
कुण जोतै हळ
अर करै बिरखा री उडीक

स्हैर कांनी
आंख्यां मींच भाजतो
हांफतो म्हारो गांव
कांई बावळो होयग्यो।
</poem>
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