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|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
जाणूं हूं
थूं नीं जा सकै
काच साम्हीं
आपरै साच सूं
कद तांई भाजसी
कद तांई करसी हाको
आपरै मन रै मांयलै
सरणाटै नैं तोड़ण सारू
कद तांई
अंधारै में भाजतो रैसी
खावतो रैसी ठोकरां
रोंवतो रैसी
आपरी किस्मत नैं।
खोल’र देख आंख्यां
थारै चौफेर
थारै ओळै-दोळै रा लोग
अचूंभो करै
थारै मिजळैपण माथै।
</poem>
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