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जी अगुताया
चूल्हा-चौका तो लक-दक है
पर जीवन कींचड़ कीचड़ धिसराया पहने पहने इन चरक चढ़े कपड़ों से मन आजिज आजिज़आया
कुछ लुंगी छाप समय भी हो
थोड़ा तकरार की भी सोचो।
सुन बे जहुए
जबतक गोदाम न खाली हो
तो नया मॉल माल आये कैसे
कुछ तो बाज़ार की भी सोचो।