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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
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जीवन बचा है अभी

जमीन के भीतर नमी बरकरार है

बरकरार है पत्थर के भीतर आग

हरापन जड़ों के अन्दर साँस ले रहा है!


जीवन बचा है अभी

रोशनी खाकर भी हरकत में हैं पुतलियाँ

दिमाग सोच रहा है जीवन के बारे में

खून दिल तक पहुँचने की कोशिश में है!


जीवन बचा है अभी

सूख गए फूल के आसपास है खुशबू

आदमी को छोड़कर भागे नहीं है सपने

भाषा शिशुओं के मुँह में आकार ले रही है!


जीवन बचा है अभी
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