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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
}}
औरत ने कहा
मर्द ने कुछ भी नहीं सुना
मर्द ने कुछ भी नहीं कहा
औरत ने सुन लिया सब कुछ!
एक बच्चा
कि सपना औरत और मर्द का मिला-जुला
पूरा का पूरा आदमी बनकर खड़ा है!
औरत कुछ भी नहीं कह रही है
मर्द सब कुछ सुन रहा है
यहाँ तक कि औरत की साँसों में
साँस ले रही है चुप्पी को
सुगबुगाकर
सहस्रदल कमल बन गई है जो।
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
}}
औरत ने कहा
मर्द ने कुछ भी नहीं सुना
मर्द ने कुछ भी नहीं कहा
औरत ने सुन लिया सब कुछ!
एक बच्चा
कि सपना औरत और मर्द का मिला-जुला
पूरा का पूरा आदमी बनकर खड़ा है!
औरत कुछ भी नहीं कह रही है
मर्द सब कुछ सुन रहा है
यहाँ तक कि औरत की साँसों में
साँस ले रही है चुप्पी को
सुगबुगाकर
सहस्रदल कमल बन गई है जो।
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