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दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है
आग लगाने वाला पानी का व्यापारी है
मछुआरे की नीयत खोटी तब वो समझ सकी
कँटिया में जब हाय फँसी मछली बेचारी है
 
लोग कबूतर बनकर खाली टुक -टुक ताक रहे
उसकी जुमलेबाजी में कितनी मक्कारी है ?
 
रंग बदलने वाली उसकी फ़ितरत भी देखी
वो गिरगिट सा मतलब से ही रखता यारी है
 
यारो मरने की ख़ातिर तो दहशत ही काफ़ी
मान लिया कोरोना इक घातक बीमारी है
 
काँटे अपने आप उगे हैं होगी बात सही
फिर भी माली की भी तो कुछ जिम्मेदारी है
 
उसके बारे में इससे ज़्यादा क्या और कहूँ ?
लोग यही बस देख रहे हैं सूरत प्यारी है
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