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मन्द समीरण, शीतल सिहरण, तनिक अरुण द्युति छाई,
रिमझिम में भींगी भीगी धरती, यह चीर सुखाने आई,
लहरित शस्य-दुकूल हरित, चंचल अचंल-पट धानी,
चमक रही मिट्टी न, देह दमक रही नूरानी,
हरियाली पर तोल रही उड़ने को नील गगन में,
सजल सुरभि देते नीरव मधुकर की अबुझ तृषा को,
जागरुक हो चले कर्म के पंथी ल्क्ष्यलक्ष्य-दिशा को,
ले कर नई स्फूर्ति कण-कण पर
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