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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>अब समाप्त समाप्त हो चुका मेरा काम।
करना है बस आराम ही आराम।
अब न खुरपी, न हँसिया,
न पुरवट, न लढ़ियालढ़िया, ::न रतरखाव, न हर, न हेंगा।
मेरी मिट्टी में जो कुछ निहित था,
उसे मैंने जोत-वो,
अश्रु स्वेदस्वेद-रक्त रक्त से सींच निकाला,
काटा,
खलिहान का ख्लिहाल ख्लिहाल पाटा, अब मौत क्या क्या ले जाएगी मेरी मिट्टी से ठेंगा।</poem>