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Kavita Kosh से
अभिलाषाओं के
दिवास्वप्न पलकों पर बोझ हुए जाते
फिर भी जीवन के चौसर पर साँसों की बाजी बाज़ी जारी है।
हारा जीता
जो कुछ
लिख गया कुंडली में वह टाले कभी नही नहीं टलता।
जलता है
अहंकार सबका सोने का नगर नही नहीं जलता।
हम रोज