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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
ज़िन्दगी क़ैद से भी बद-तर है
कब मिलेगी निजात क्या कहिये

हर कदम हादिसा है, महशर है
ज़िन्दगी क़ैद से भी बद-तर है
जाने-कितने युगों का चक्कर है

वारदातें-हयात क्या कहिये

ज़िन्दगी क़ैद से भी बद-तर है
कब मिलेगी निजात क्या कहिये।

</poem>
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