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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
क्यों रोज़ बदल जाता है हर शख्स का चेहरा
ये बात कि दर्पण ने भी जानी तो नहीं है
तुफ देख के भी उसने कभी ये नहीं पूछा
क्यों रोज़ बदल जाता है हर शख्स का चेहरा
बस देखता रहता है, मगर कुछ नहीं कहता
चेहरों का बदल जाना कहानी तो नहीं है
क्यों रोज़ बदल जाता है हर शख्स का चेहरा
ये बात कि दर्पण ने भी जानी तो नहीं है।
</poem>
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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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क्यों रोज़ बदल जाता है हर शख्स का चेहरा
ये बात कि दर्पण ने भी जानी तो नहीं है
तुफ देख के भी उसने कभी ये नहीं पूछा
क्यों रोज़ बदल जाता है हर शख्स का चेहरा
बस देखता रहता है, मगर कुछ नहीं कहता
चेहरों का बदल जाना कहानी तो नहीं है
क्यों रोज़ बदल जाता है हर शख्स का चेहरा
ये बात कि दर्पण ने भी जानी तो नहीं है।
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