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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
ये दौरे-हादिसात है, इसमें अमां कहां
इस दौरे-हादिसात में जी कर तो देखिये

पल भर की भूल-चूक में सदियों का है जियां
ये दौरे-हादिसात है, इसमें अमां कहां
अर्ज़-ए-तलब करोगे तो गल जायेगी ज़बां

अर्ज़-ए-तलब के हश्र का मंज़र तो देखिये

ये दौरे-हादिसात है, इसमें अमां कहां
इस दौरे-हादिसात में जी कर तो देखिये।</poem>
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