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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर
अपने ही औहाम की मस्ती में तन्हा ही रहा
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
हो के बस्ती का भी तू बस्ती में तन्हा ही रहा
खिल सके किस पर तिरे राज़े-निहां तेरे बग़ैर
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर।
</poem>
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|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर
अपने ही औहाम की मस्ती में तन्हा ही रहा
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
हो के बस्ती का भी तू बस्ती में तन्हा ही रहा
खिल सके किस पर तिरे राज़े-निहां तेरे बग़ैर
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर।
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