Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatTraile}}
<poem>
आईना बन सका न मैं खुद अपनी ज़ात का
धरती भी है नज़र में मिरी, आसमान भी

क्या पुर-फ़रेब किस्सा है मेरी हयात का
आईना बन सका न मैं खुद अपनी ज़ात का
कहने को हूँ मैं एक मुरक्का सिफ़ात का

अपने ही होने का नहीं मुझ को गुमान भी

आईना बन सका न मैं खुद अपनी ज़ात का
धरती भी है नज़र में मिरी, आसमान भी।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,967
edits