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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
जो मैंने आइना देखा तो ये खुला मुझ पर
कि मेरे तन में कोई दूसरा भी रहता है

असर अजीब सा ये देख कर हुआ मुझ पर
जो मैंने आइना देखा तो ये खुला मुझ पर
है कोई और भी जिसका है शायबा मुझ पर

जो मुझ में रह के भी मुझ से जुदा ही रहता है
कि मेरे तन में कोई दूसरा भी रहता है।
</poem>
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