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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सभ्यता के प्लेटफार्म पर खड़ी -
बेचैन-सी ये दुनिया
बार-बार देखती है
टीनशेड से लटकी हुई घड़ी
ओह ! गाड़ी बहुत लेट है -
भीड़ से दूर जाकर
नए दोस्त बनाएँ
अगर चल रहा नेट है
नमस्कार, कृपया ध्यान दीजिए -
इस घड़ी को देखने
और सिस्टम को कोसने का
मज़ा लीजिए
खड़े रहिए या पड़े रहिए -
बहस कीजिए
और अपनी बात पर
अड़े रहिए
ग्लोबलाइजेशन का स्वाद चखिए -
जीने के लिए
ज़रूरी है
कि स्वयं को गिरवी रखिए
नई सदी के ये ही तो रंग हैं -
सैलफोन और लैपटोप
दोनों
शरीर के अविभाज्य अंग हैं
लड़ते रहिए, भिड़ते रहिए -
कुछ करिए मत
नेताओं से
सिर्फ़ चिढ़ते रहिए
कभी लाइका और कभी डॉली यहाँ 'पेट' है -
इसीलिए
ख़ुशी की गाड़ी
अनेक सदियों से लेट है..!
</poem>
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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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<poem>
सभ्यता के प्लेटफार्म पर खड़ी -
बेचैन-सी ये दुनिया
बार-बार देखती है
टीनशेड से लटकी हुई घड़ी
ओह ! गाड़ी बहुत लेट है -
भीड़ से दूर जाकर
नए दोस्त बनाएँ
अगर चल रहा नेट है
नमस्कार, कृपया ध्यान दीजिए -
इस घड़ी को देखने
और सिस्टम को कोसने का
मज़ा लीजिए
खड़े रहिए या पड़े रहिए -
बहस कीजिए
और अपनी बात पर
अड़े रहिए
ग्लोबलाइजेशन का स्वाद चखिए -
जीने के लिए
ज़रूरी है
कि स्वयं को गिरवी रखिए
नई सदी के ये ही तो रंग हैं -
सैलफोन और लैपटोप
दोनों
शरीर के अविभाज्य अंग हैं
लड़ते रहिए, भिड़ते रहिए -
कुछ करिए मत
नेताओं से
सिर्फ़ चिढ़ते रहिए
कभी लाइका और कभी डॉली यहाँ 'पेट' है -
इसीलिए
ख़ुशी की गाड़ी
अनेक सदियों से लेट है..!
</poem>