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बहार / अभिषेक कुमार अम्बर

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<poem>
फ़स्ल पक आई है गेहूँ की
गुंचे मुस्कुराए हैं
कुछ मिट्टी के गमलों में
तो कुछ धरती की बाहों में
इक इक हाथ उग आया है
चटनी के लिए धनिया
पुदीने की भी कोंपल
थोड़ी थोड़ी फूट आई हैं
मगर इक बीज तुमने
दिल की धरती पर जो बोया था
वो अब भी मुंतज़िर है
तुम्हारा खाद पानी चाहता है।
</poem>
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