554 bytes added,
05:15, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
दुनिया के चलन का हो बयां क्या किस्सा
कुछ और उलझता गया जितना सुलझा
सूरज ही मफर की न थी हालात से कुछ
शीशे में बाल निकला हर इक रिश्ता।
</poem>