551 bytes added,
05:29, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
ज़हराबे-ग़मे-हयात पी सकता हूँ
जो ज़ख़्म दिये वक़्त ने सी सकता हूँ
नौमीदी-ए-पैहम का भला हो कि मैं अब
बे यारो-मददगार भी जी सकता हूँ।
</poem>