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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
सूरज से मफर से हमें हासिल हुआ क्या
साये के तआकुब के सिवा कुछ न मिला
सूरज से मिली आंख तो क्या देखते हैं
करता है वही साया हमारा पीछा।
</poem>
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