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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
आईना-ए-अहसास लिए फिरते हैं
किरदार की बू-बॉस लिए फिरते हैं
क्या लोग हैं हम खुद को समझने से भी
क़ासिर हैं मगर आस लिए फिरते हैं।
</poem>
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